Tuesday, July 19, 2011

एक स्त्री की सुनदरता

स्त्री की सुनदरता उसके कपडे से नहीं होती,
ना ही उसके शरीरसे,
और ना ही उस के बाल बनाने के तरीके से.

एक स्त्री की सुनदरता 
उसकी आँखों की चमक से होती है.
वाही तो ह्रदय के द्वार तक जाने का रास्ता होती है,
जहा प्यार का सागर बस्ता है.

एक स्त्री की सुनदरता
उसके चेहरे के नाक नक़्शे से नहीं होती,
उसकी सुनदरता तो उसकी आत्मा से प्रतिबिंबित होती है.

यह चिंता है की वह प्यार से देती है,
वो जुनून जो वो दिखाती है.
और एक स्त्री की  सुनदरता
बड़ते हुवे सालो से अदिक होते रहती है.

आप हँसना नहीं भूल जाते क्यों के आप की उम्र बाद रही है,
उम्र हो गई है इस लिए हसना भूल जाने लगते हो.

2 comments:

Bharat yogi said...

नीलम जी ,,,,,,,,,,स्त्री की सुंदरता उसकी आंखो से नहीं होता है। स्त्री को ईश्वर ने ही सुंदर बनाया है। सुन्दरता स्त्री शरीर के किसी भी अंग में नहीं होती है। और कह जाए तो पूरे अंगो में होती है। स्त्री की सुंदरता उसके संस्कार होते हैं। स्त्री कभी मां बनकर ममता बिखरती है। तो कभी बहन बनकर स्नेह,और फिर वहीं स्त्री पत्नी बनकर प्रेम करती है। तुम्हारे सोच से अंधी लड़कियों का जीवन नरक हो जाएगा

Neelam Burde said...

Bharat ji aapne shaayad kavitaa thik se padhi nahi aisaa aap ke is comments se maamul hotaa hai. Mein is kavitaa mein yah kahaa hai ke stree ke hridhay mein jo sachaa pyaar hota hai vah aankho se jhalaktaa hai aur uske sanskaar/vektimahatva uski atmaa se aate hai jo uska savbhav se drashit hota hai. mein yahaa koi upri dikhaave ki yaa bhavtikvadi baato ki baat hi nahi ki hai. Kripaya agli baar dhyaan se padiye ga koi bhi lekh/kavita ityadi.